लोकतंत्र में मतभिन्नता स्वाभाविक है. आलोचना अवश्य करो. लेकिन अभद्र भाषा में नहीं. सभ्य भाषा में की गयी आलोचना ज़्यादा असरदार होती है. Jul 01, 2018 25508